Study Material : नैतिक मूल्यों में परिवार की भूमिका (प्रशासनिक नैतिकता | Administrative Ethic)
मूल्य को विकसित करने में परिवार की भूमिका (Role of Family in Inculcating Values)
परिवार नागरिकता अर्थात किसी व्यक्ति की प्रथम पाठशाला है, जो बालक के सर्वांगीण विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
किसी बालक के शुरूआत के 6 वर्ष समाजीकरण का प्रथम साधन है। बाल्यावस्था में परिवार द्वारा प्राप्त संस्कारो के आधार पर बालक के व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
परिवार से सीखे मूल्य (Values Learned From Family)
माता से- बालक की प्रथम शिक्षिका उसकी माता होती है। बालक अपनी माता से ममत्व, धैर्य, सहनशीलता, त्याग, कठोर परिश्रम, देखभाल का गुण आदि सीखता है।
पिता से – बालक अपने पिता को सर्वाधिक अनुसरण करता है। बालक अपनी पिता से अनुशासन, नेतृत्व, संघर्ष, साहस, आत्मनिर्भरता, कर्तव्यपरायणता आदि गुण सीखता है।
अन्य परिवारजनों से – भाई-बहनों से सहयोग का भाव, आपसी स्नेह, भातृत्व, साझा का भाव आदि बालक सीखता है।
साथ ही वरिष्ठ परिजनों से धार्मिकता, आध्यात्मिकता, नैतिकता आदि गुण सीखता है।
बालक परिवार से विभिन्न जातक कथाएं सुनता है, महापुरुषों के उपदेश सुनता है, आदर्श लोगों की जीवनियां सुनता है, परिणाम स्वरूप वह नैतिक उपदेशों का अनुकरण करने लगता है।
अर्थात यह स्पष्ट हो जाता है, कि बालक को ‘क्या अच्छा है और क्या बुरा है’ इसका ज्ञान सर्वप्रथम परिवार से होता
मूल्य निर्माण करने में परिवार का महत्व (Importance of Family in Creating Values)
पारिवारिक मूल्य स्थायी प्रवृत्ति के होते हैं जो आजीवन बालक के मन-मस्तिक को सकारात्मक तथा नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
परिवार के सदस्य चाहें तो बालक के समक्ष किसी भी परिस्थिति में तटस्थ बनें रहने जैसे मूल्यों का निर्माण करते हैं।
व्यक्ति जीवनभर परिवार के सम्पर्क में रहता है इसलिए मूल्य निर्माण की प्रक्रिया सतत् रुप से चलती रहती है।
परिवार द्वारा प्रारंभिक वर्षों में ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण कर दिया जाता है।
परिवार द्वारा पुरातन मूल्यों व नवीन मूल्यों के मध्य सामंजस्य स्थापित किया जाता है।
माता-पिता की कथनी-करनी में अंतर नहीं होने से बालक भी वही शिक्षा प्राप्त करता है, परिणाम स्वरूप अपने व्यक्तित्व का निर्माण करता है।
परिवार में मूल्य निर्माण हेतु अपनाई विधियाँ (Methods Adopted for Building Values in the Family)
लालन-पालन विधियां – पारम्परिक परवरिश की विधियां जिसमें कठोरता अधिक होती है। इसमें संवादहीनता जैसे तत्त्वों को देखा जा सकता है।
कुछ परिवारों में उदारता पर अधिक जोर दिया जाता है, जिसमें बालक को अधिक लाड़-प्यार से रखा जाता है।
प्रेक्षण विधि – इस विधि में बच्चा अपने परिवार के सदस्यों के व्यवहार को देखता है तथा उसी का अनुकरण करता है। इसे Observational Learning भी कहते है।
प्रेरणास्त्रोत विधि (Inspirational hearing) – इस विधि में बालक के लिए उसके परिवारजन बालक के प्रेरणास्रोत के रूप में कार्य करते हैं।
दंड और पुरस्कार विधि – बालक को कुछ नया सीखाने हेतु उद्वेलित किया जाता है। जिसके अन्तर्गत अच्छा कार्य करने पर उसे पुरस्कार दिये जाते हैं तथा बुरा कार्य या आचरण करने पर उसे दंड दिया जाता है।
सामाजिक प्रथाएँ या रीति-रिवाज – परिवार में मनाये जाने वाले त्योहार, विभिन्न प्रथाएं, संस्कार, रीति-रिवाजों से भी बालक का व्यक्तित्व निर्मित होता है।
परिवार में मूल्य निर्माण की समस्याएं (Problems of Value Formation in the Family)
परिवार के सदस्यों के मध्य आपसी सामंजस्यता की कमी होती है, जिससे बालक पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
कई बार बालक विभिन्न नकारात्मक और प्रतिगामी मूल्य भी सीखता है, जैसे संकीर्णता, अंधविश्वास, लैगिंग भेदभाव इत्यादि।
व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ पारिवारिक दायित्वों पर हावी है।
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