Study Material : नितिशास्त्र और मानवीय मूल्य (प्रशासनिक नैतिकता | Administrative Ethic)
मानवीय मूल्य का परिचय (Introduction to Human Values)
मूल्य – सामान्य अर्थ “महत्ता” अर्थात महत्व। जिसकी महत्ता अधिक उसका मूल्य भी अधिक होता है।
मूल्य की व्याख्या अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग होती है, जैसे अर्थव्यवस्था में जिस वस्तु की जितनी मांग होती है, वह वस्तु उतना ही मूल्य रखती है। ठीक इसी प्रकार राजनीति में एक ऊर्जावान नेता जितना अच्छा वक्ता होता है, वह उतना ही जनता के मध्य लोकप्तिय होता है। यह मानवीय व्यवहार का प्रकटीकरण करते है।
परिभाषा में मूल्य वे गहरे नैतिक आदर्श हैं, जिन्हें उपलब्ध करने के लिए नैतिक नियम बनाए जाते हैं। ये अमूर्त प्रत्यय हैं, जिनका लक्ष्य मानवीय कल्याण से है।
मानवीय मूल्य में मानवीय मूल्यों से तात्पर्य ऐसे अमूर्त मूल्यों से है, जो मानव की व्यवहार, कार्य का मार्गदर्शन करके जीवन को परिष्कृत, गरिमापूर्ण एवं सार्थक बनाते हैं। ये मूल्य मानवीय आचरण को प्रभावित करते हैं।
ये मूल्य तथ्यात्मक व मानकीय विश्वासों पर आधारित होते हैं।
मानवीय मूल्यों की विशेषताएँ (Characteristics of Human Values)
ये मूल्य समाज के दर्पण के रूप में कार्य करते हैं।
इन मूल्यों का संबंध व्यक्ति की इच्छापूर्ति से है।
मूल्य अमूर्त होते हैं, अर्थात् ये केवल मानसिक अवधारणाएं हैं जो किसी वस्तु के रूप में दिखाई नहीं देती लेकिन मानव के व्यवहार से प्रकट होती हैं।
इनकी प्रकृति आदर्शात्मक होती है।
मूल्य आत्मनिष्ठ तथा वस्तुनिष्ठ दोनों प्रकार के हो सकते है।
मूल्य व्यक्ति द्वारा सीखे जाते हैं, जन्मजात नहीं होते। सीखने की प्रक्रिया समाजीकरण कहलाती है।
इनमें एक क पदक्रम होता है, जो मूल्य उच्च स्तर के होते हैं वे ही आदर्श रूप में स्वीकारे जाते हैं।
ये सापेक्षतः स्थिर होते हैं।
इनका संबंध आंतरिक पक्ष से होता है।
इनको अपनाकर समाज विकास की ओर अग्रसर होता है।
मूल्यों के भेद (Differences in Values)
व्यक्तिगत मूल्य – इन मूल्यों में स्वतंत्रता, आत्मविश्वास, सृजनात्मकता जैसे तत्व शामिल हैं।
सामाजिक मूल्य – इन मूल्यों में सहयोग, करूणा, दया, सहानुभूति, सहनशीलता जैसे तत्त्व शामिल हैं।
पर्यावरणीय मूल्य – वन्य जीव-जंतु सरंक्षण, इनके प्रति दया, प्रेमाभाव जैसे तत्त्व शामिल हैं।
पारिवारिक मूल्य – परिवार के सदस्यों के प्रति दया, सहयोग, प्रेम, सौहार्द, सम्मान, आदर जैसे तत्त्व शामिल हैं।
सार्वभौमिक मूल्य – साधन तथा साध्य मूल्य शामिल है। अर्थात किसी कार्य को करने का तरीका और कार्य पूरे होने का परिणाम वह सार्वभौमिक मूल्य के अंतर्गत आता है।
लोकतांत्रिक मूल्य – लोकतंत्र का निर्माण, सार्वजनिक हित, प्रतिवद्धता, उत्तरदायित्व इत्यादि मूल्य शामिल हैं।
मानवीय मूल्यों के प्रकार (Types of Human Values)
1 उद्देश्य की दृष्टि से
(क) साध्य मूल्य – इन्हें स्वतः मूल्य, जैविक मूल्य भी कहते हैं। ये मूल्य किसी के अधीन नहीं होते है।
यह सर्वोच्च/उच्चतम प्रकृति के मूल्य होते हैं। ऐसे मूल्यों को व्यक्ति सदैव पाना चाहता है।
ये पूर्णतः परिणाम निरपेक्ष होते हैं।
उदाहरण के लिए – शांति, संतोष, न्याय, स्वतंत्रता, समानता, ज्ञान, सत्य।
(ख) साधन मूल्य – इन्हें परतः मूल्य भी कहते हैं। ये अधीनस्थ मूल्य होते हैं, जिनके माध्यम से उच्चतम मूल्यों की प्राप्ति होती है। इन्हें सामाजिक / आर्थिक मूल्य भी कहते हैं। ये मानवीय अस्तित्व को बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण होते हैं।
उदाहरण के लिए – भौतिक संसाधन रोटी, कपड़ा, मकान इत्यादि।
2 दृष्टिकोण की दृष्टि से
(क) सकारात्मक मूल्य
सकारात्मक मूल्य वे मूल्य होते हैं, जिनसे समाज का नैतिक विकास होता है, इसलिए इन्हें प्रोत्साहन मूल्य भी कहते हैं। उदाहरण के लिए धैर्य, विनम्रता, अहिंसा, कर्तव्यपालन।
(ख) नकारात्मक मूल्य
नकारात्मक मूल्य – वे मूल्य जो समाज के नैतिक विकास में बाधक होते हैं। इन्हें हतोत्साहित मूल्य भी कहते हैं। उदाहरण के लिए हिंसा, भ्रष्टाचार, ईर्ष्या, अंहंकार, क्रोध।
अरबन नामक दार्शनिक ने किसी भी मूल्य को साधन मूल्य के रूप में स्वीकार नहीं किया, इनके अनुसार सभी मूल्य साध्य मूल्य हैं। तथा अनिवार्य रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।
मानवीय मूल्यों की वर्तमान प्रासंगिकता (Current Relevance of Human Values)
वर्तमान में जीवन के प्रत्येक स्तर एवं प्रत्येक क्षेत्र में मूल्यों का हास हो रहा है।
वर्तमान में समाज में प्रचलित भ्रष्टाचरण, भाई-भतीजावाद, घृणा की भावना इत्यादि कारणों से मूल्य में संकट उत्पन्न हो रहा है।
मूल्य संकट से तात्पर्य- “मानव की ऐसी भावनात्मक प्रवृत्ति से है, जिसके अन्तर्गत सही व गलत का भेद जानते हुए भी गलत / नकारात्मक कार्य को किया जाता है”।
मूल्य संकट के बारे में डॉ० राधाकृष्णन का कथन है – “हम यह जानते हैं कि सही क्या है, हम उसकी सराहना करते हैं, लेकिन उसे अपनाते नहीं हैं। हम यह भी जानते हैं कि बुरा क्या है, हम उसकी भर्त्सना भी करते है, फिर भी उसी के पीछे भागते हैं।”
वर्तमान में मूल्यविहीनता के कारण निम्न समस्याएं उत्पन्न होती जा रही हैं, जैसे – लिंगभेद, यौनशोषण, उत्पीड़न, भ्रष्टाचार, जातिभेद, बाल-अपराध, धार्मिक वैमनस्य, हिंसा, अपराधिक प्रवृत्ति, पर्यावरणीय संकट, आंतकवाद इत्यादि।
इन समस्याओं के समाधान का एकमात्र प्रभावी उपाय सुशासन की स्थापना करना है।
सुशासन की स्थापना हेतु शासन एवं प्रशासन में उच्च मूल्य युक्त नेताओं एवं अधिकारियों की उपस्थिति एवं जनमानस का अपने अधिकारों के प्रति जागरुकता एवं कर्तव्यों के प्रति संवेदनशील होना आवश्यक है।
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