खेल पर्यावरण और समाज Study Material
अध्याय – 1 खेल पर्यावरण और समाज Sports Environment and Society (भाग – 1)
सकारात्मक खेल वातावरण के आवश्यक तत्व (Essential Elements of Positive Sports Environment)
सकारात्मक खेल वातावरण निम्नलिखित तत्वों से मिलकर बना है –
1) स्पोर्ट्स स्टेडियम या स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स – सकारात्म खेल वातावरण के लिए स्पोर्ट्स स्टेडियम या स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स की श्रेष्ठ योजना होनी चाहिए। स्टेडियम्स का निर्माण आवश्यकता के अनुसार होना चाहिए। शहर से अधिक दूरी पर नहीं होना चाहिए। स्टेडियम का स्थान, वायु प्रदूषण से रहित होना चाहिए। स्पोर्ट्स स्टेडियम में दर्शकों के लिए बैठने की उचि व्यवस्था होनी चाहिए। वहाँ सुरक्षित पेयजल, शौचालयौं, मूत्रालयों आदि का उचि प्रावधान होना चाहिए। वाहनों की पार्किंग के लिए भी आवश्यक स्थान होना चाहिए। स्टेडियम का निर्माण, निर्माण के नियमों के अनुसार ही होना चाहिए। प्रकाश, हवा व पानी के निकास आदि की व्यवस्था भी उचि होनी चाहिए। खेल मैदान की चहारदीवारी भी होनी चाहिए। स्पोर्ट्स स्टेडियम विभिन्न दृष्टिकोणों से सुरक्षित, सुदृढ़ व विश्वसनीय होने चाहिए। स्टेडियम का पूर्ण ढाँचा (Infrastructure) भूकंप रहित (Earthquake Proof) होना चाहिए।
2) खेल मैदान/कोर्ट्स (Playgrounds/ Cpirts) – सकारात्मक खेल वातावरण के लिए खेल मैदान/कोर्ट्स के लिए काफी खुला स्थान होना चाहिए। खेल मैदान या ट्रैक समतल, मनोहर तथा अच्छे बने होने चाहिए, ताकि उनका प्रयोग खिलाड़ियों को प्रोत्साहित कर सके। साफ एवं स्वच्छ होने चाहिए। कृत्रिम खेल मैदान, कोर्ट्स व ट्रैक आदि अच्छी गुणवत्ता तथा अंतराष्ट्रीय मानकों के अनुसार होने चाहिए। मैदान का रख-रखाव भी उचित ढंग से होना चाहिए।
कक्षा – 12 स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा– सकारात्मक खेल वातावरण के लिए खेल उपकरण, प्रशिक्षण उपकरण व सुरक्षात्मक उपकरण खेलों के अनुसार उपलब्ध होने चाहिए तथा उनकी गुणवत्ता भी अच्छी होनी चाहिए। उपकरण अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार भी होने चाहिए। खिलाड़ियों को इन उपकरणों के प्रयोग करने के बारे में उचित जानकारी होनी चाहिए। उपकरणों को प्रयोग में लाने से पहले इनका निरीक्षण अवश्य कर लेना चाहिए या फिर कुछ अंतराल के बाद इसका निरीक्षण करते रहना चाहिए। सुरक्षात्मक उपकरणों का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। स्पोर्ट्स किट व जूते आदि भी उचित होने चाहिए।
4) जलवायु से संबंधित सामान्य दशाएँ – सकारात्मक खेल वातावरण के लिए जलवायु से संबंधित दशाएँ भी सामान्य होनी चाहिए। खिलाड़ियों का अत्यधिक गर्मी या सर्दी व आर्द्रता या नमी में अभ्यास करना भी हानिकारक हो सकता है। अतः खिलाड़ियों को ऐसे अत्यधिक प्रचंड वातावरण में अभ्यास नहीं करना चाहिए। उन्हें अपना अभ्यास गर्मी के मौसम के दौरान सुबह-सुबह या शाम होने पर ही करना चाहिए। सर्दी के मौसम में उन्हें इंडोर स्टेडियम में अभ्यास करना चाहिए। अत्याधिक गर्मी व ठंडी दशाओं या परिस्थितियों के कारण हीट स्ट्रोक, हीट क्रैम्प्स, गर्मी से थकावट तथा फ्रॉस्टबाइट आदि हो सकता है। इसलिए, उन्हें जलवायु से संबंधित सामान्य दशाओं में अभ्यास करना चाहिए।
5. समाज की संस्कृति व परंपरा – समाज की संस्कृति एवं परंपराएँ खेल वातावरण को निर्मित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। व्यक्ति संस्कृतियाँ एवं परंपराओं द्वारा स्थापित निर्देशों का पालन करते हैं। व्यक्ति उस विशेष खेल में श्रेष्ठता हासिल करते हैं, जिसको समाज के द्वारा अधिक पसंद किया जाता है या वरीयता दी जाती है। उदाहरण के लिए – जापान, दक्षिणी कोरिया व चीन टेबल टेनिस में श्रेष्ठता हासिल करते हैं। पंजाब में हॉकी व पश्चिमी बंगाल में फुटबॉल को वरीयता दी जाती है। संस्कृति व परंपरा एक सकारात्मक खेल वातावरण का निर्माण करते हैं।
6) खेल अधिकारियों व दर्शकों की अभिवृत्ति व व्यवहार – प्रशिक्षकों, खेल अधिकारियों (रेफरी व अम्पायर्स आदि) व दर्शकों आदि की अभिवृत्ति व व्यवहार भी खेल वातावरण के आवश्यक तत्व हैं। प्रशिक्षकों को व्यवहार के नैतिक व आचारिक मूल्यों का अवश्य पालन करना चाहिए। उनकी क्रियाओं या गतिविधियों व शब्दों के मध्य अंतर नहीं होना चाहिए अर्थात उनकी कथनी व करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। उन्हें युवाओं/खिलाड़ियों पर किसी भी कीमत पर केवल जीतने की अभिवृत्ति पर ही जोर नहीं देना चाहिए। प्रशिक्षकों को सकारात्मक क्रियाकलापों वाले आदर्श व्यक्ति के रूप में भूमिका निभाकर अच्छी खेल भावना को विकसित करना चाहिए।
प्रशिक्षकों को मूलभूत व विशिष्ट कौशलों को उचित ढंग से सिखाना तथा प्रबलित करना चाहिए। प्रशिक्षकों व खेल अधिकारियों की इस प्रकार की अभिवृत्ति व व्यवहार सकारात्मक खेल वातावरण को निर्मित करने में निश्चित रूप से लाभदायक होते हैं। दर्शकों की उपस्थिति भी खिलाड़ियों को अभिप्रेरणा प्रदान करती है, जबकि उनकी अनुपस्थिति से खिलाड़ियों का मनोबल कम हो जाता है। दर्शकों की नकारात्मक अभिवृत्ति एवं व्यवहार नकारात्मक खेल वातावरण को निर्मित कर सकते हैं। सकारात्मक वातावरण को बनाने के लिए दर्शकों को कुछ नैतिक तथा व्यावहिरक मूल्यों का पालन अवश्य करना चाहिए।
7) खिलाड़ियों व उनके माता-पिता की अभिवृत्ति तथा व्यवहार – कभी-कभी व्यावसायिक खिलाड़ी, परिपक्व व जिम्मेदार तरीके से व्यवहार नहीं करते तथा अच्छे रोल मॉडल के रूप में स्वयं को व्यक्त नहीं करते। खिलाड़ियों को अच्छी खेल भावना का प्रदर्शन करना चाहिए। स्वयं के व्यवहार की जीम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए। मात-पिता को भी सकारात्मक रोल मॉडल की भूमिका द्वारा अच्छी खेल-भावना को प्रदर्शित करना चाहिए। उन्हें खिलाड़ियों के लिए स्वस्थ एवं सुरक्षित खेल वातावरण को बनाने का प्रयास करना चाहिए।
8) नशीली दवाओं, तंबाकू व मदिरा से मुक्त वातावरण – सकारात्मक खेल वातावरण का यह भी एक महत्वपूर्ण एवं आवश्यक तत्व है। प्रशिक्षकों, माता-पिता, दर्शकों, खिलाड़ियों तथा अन्य खेल अधिकारियों को नशीली दवाओं, मदिरा व तंबाकू से दूर रहना चाहिए। ऐसे पदार्थों के सेवन से स्वास्थ्य संबंधी जटिल समस्याएँ व विकार उत्पन्न तो होते ही हैं, साथ-साथ खेलों के वातावरण को भी हानि पहुँचनती है। अतः प्रशिक्षकों, खिलाड़ियों व खेल अधिकारियों आदि को ऐसे पदार्थों से स्वयं को दूर रखते हुए सकारात्मक खेल वातावरण को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए।
खेल वातावरण के सुधार में वयक्ति की भूमिका (Individual’s Role in Improving Sports Environment)
खेल वातावरण सुधार के लिए निम्नलिखित बिंदुओ पर बल देना चाहिए –
1 खेल सुविधाएँ – प्रतियोगिता में भाग लेने वाले प्रतियोगियों की सुरक्षा के लिए सभी खेल सुविधाओं को अच्छी हालत में रखना चाहिए तथा प्रायः उनका निरीक्षण करते रहना चाहिए। सुरक्षा बाड़, बैटिंग के लिए जाल, पानी की जगह, सफाई व्यवस्था संबंधी सुविधाएँ व आपातकानील चिकित्सा सेवाएँ आदि उपलब्ध होनी चाहिए। खेलने की सतह की नियमित रूप से सफाई होनी चाहिए। सतह फिसलने वाली नहीं होनी चाहिए। बास्केटबॉल के पोलों के पास दीवार पर उचित पैडिंग होनी चाहिए।
2 सुरक्षात्मक उपकरण – खिलाड़ियों द्वारा आवश्यक सुरक्षात्मक उपकरणों का प्रयोग किया जाना चाहिए। ये उपकरण अच्छी गुणवत्ता के होने चाहिए तथा मानदंडो के अनुसार होने चाहिए।
3 खिलाड़ी की पुष्टि – एक व्यक्ति, जो खेलों के क्षेत्र में आना चाहता है, उसे पुष्ट (Fit) होना चाहिए। पुष्टि के उद्देश्य के लिए उसे प्रारंभिक स्तर पर सामान्य अनुकूलन तथा खेल से संबंधित विशेष अनुकूलन करना चाहिए। इस क्षेत्र में हुए अनुसंधान अध्ययन दर्शाते हैं कि खएल क्षेत्र में होने वाली दुर्घटनाओँ से बचाव में पुष्टि सहायक होती है।
4 जलवायु संबंधी दशाएँ – खेलों का आयोजन विस्तृत क्षेत्र की जलवायु संबंधी दसाओं, जैसे – गर्मी, सर्दी, आर्द्रता व प्रदूषित वायु आदि में किया जाता है। देखा जा चुका है कि खेलों में मृत्यु का एक महत्वपूर्ण प्रतिशत जलवायु संबंधी दशाओं से, विशेष रूप से गर्मी संबंधी समस्याओं से संबंधित है। गर्मी, सर्दी, आर्द्रता व प्रदूषित वायु की प्रचंड दशाओं में निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए-
क) कुछ अंतराल के उपरांत आवश्यकतानुसार पेय पदार्थ लेते रहना चाहिए।
ख) प्रचंड वातावरणीय दशाओं के दौरान जब तापमान 95 डिग्री फारनाहाइट से ऊपर हो और आर्द्रता भी अत्यधिक हो, तो भारी प्रयास वाला कार्य नहीं करना चाहिए।
ग) भीषण गर्मी के दौरान हल्के कपड़े पहनने चाहिए। यूनिफॉर्म तापमान व आर्द्रता को ध्यान में रखकर पहननी चाहिए।
घ) अत्यधिक सर्दी में, खुले में आने से, हाइपोथर्मिया व त्वचा से संबंधित अन्य समस्याएँ जैसे – फ्रॉस्ट बाइट व फ्रॉस्टनिप हो सकती है।
ड़) यदि सर्दियों में अत्यधिक सर्द हवाएँ चल रही हों, तो लंबी अवधि तक खुले स्थान पर शारीरिक क्रियाएँ या खेल न खेलें।
च) ठंड में उचित कपड़े डालें तथा हाथ, पैर व सिर ढककर रखें।
छ) प्रदूषण के स्त्रोतों के आसपास व्यायाम न करें। अभ्यास केवल तभी करें जब वायु में प्रदूषकों की सघनता कम से गम हो।
5 कौशल – खेलों में दुर्घटनाओँ से दूर रहने के लिए खेल के उचित कौशलों को सीखना बहुत महत्वपूर्ण होता है।
6 उचित खेल संचालन एवं प्रशिक्षण – खेलों में दुर्घटनाओं के खतरों को कम करने के लिए उचित खेल संचालन एवं वैज्ञानिक ढंग से प्रशिक्षण होना चाहिए। पक्षपातपूर्ण खेल संचालन के दौरान नियमों व विनियमों का पालन उचित ढंग से नहीं किया जाता, जिस कारण दुर्घटनाओं के खतरे बढ़ जाते हैं।
7 नशीली दवाओं रहित वातावरण पर बल देना – खेलों के वातावरण में सुधार लाने हेतु नशीली दवाओं रहित वातावरण पर उचित बल दिया जाना चाहिए। खेल वातावरण में सुधार हेतु ड्रग्स (नशीली दवाओं) तंबाकू तथा अन्य मादक वस्तुओं की मनाही पर उपयुक्त जोर दिया जाना चाहिए।
8 प्रशिक्षकों तथा अन्य अधिकारियों की अभिवृत्ति एवं व्यवहार पर बल – प्रशिक्षकों तथा खेलों से संबंधित अधिकारियों की अभिवृत्ति एवं व्यवहार भी खेल वातावरण को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रशिक्षकों तथा अन्य संबंधित अधिकारियों को व्यवहार के नैतिक व आचारिक मूल्यों का अवश्य पालन करना चाहिए।
सकारात्मक खेल वातावरण को निर्मित करने के लिए दर्शकों व मीडिया की भूमिका (Role of Spectators and Media in Creating a Positive Sporting Environment)
क) सकारात्मक खेल वातावरण को निर्मित करने के लिए दर्शकों की भूमिका – सकारात्मक खेल वातावरण, वे दशाएँ व परिस्थितियाँ हैं, जो उन खिलाड़ियों के लिअ अनुकूल एवं लाभप्रद होती हैं, जो खेल गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं या भाग लेते हैं। सकारात्मक खेल वातावरण को निर्मित करने के लिए दर्शकों की उपस्थिति आवश्यक होती है। यदि दर्शकों का व्यवहार एवं अभिवृति सकारात्मक एवं उचित न हो, तो खेल वातावरण को बनाने में दर्शकों की भूमिका नकरात्मक हो सकती है। सकारात्मक खेल वातावरण को निर्मित करने के रास्ते में रूकावटें या बाधाएँ आ सकती हैं।
प्रशिक्षकों, खेल अधिकारियों व खिलाड़ियों के प्रति दर्शकों का व्यवहार व अभिवृत्ति उचित होनी चाहिए। किसी खिलाड़ी पर नकारात्मक टीका-टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। रेफरी, अम्पायर व अन्य किसी खेल अधिकारी पर भी नकारात्मक विचार प्रकट नहीं करने चाहिए। किसी प्रकार कि हिंसा में संलिप्त नहीं होना चाहिए।
ख) सकारात्मक खेल वातावरण को निर्मित करने के लिए मीडिया की भूमिका – प्रिंट मीडिया हो या इलक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों ही सकारात्मक खेल वातावरण को निर्मित करने के लिए महत्वपूर्ण एवं प्रभावी भूमिका निभाता है। प्रोत्साहन एवं बढ़ावा देने के लिए मीडिया अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर रहा है। करोड़ों व्यक्ति इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की सहायता से विभिन्न खेलों के विश्वकप अथा ओलंपिक खेल देखते हैं। ESPN, Star Sports, NEO Sports व TEN Sports आदि उपलब्ध हैं, जो खेलों के सजीव (Live) व रिकॉर्डिड कार्यक्रमों को देखने की सुविधा प्रदान करते हैं। खेलों की विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। मीडिया के माध्यम से खिलाड़ी रातों-रात हीरो बना दिए जाते हैं। मिडिया को महिलाओं के खेलों पर भी बराबर का बल देना चाहिए। परिणाम स्वरूप सकारात्मक खेल वातावरण को निर्मित करने के लिए मीडिया और अधिक प्रभावी भूमिका निभा सकता है।
महिला सहभागिता या भागीदारी – एक संवाद तथा विचार (Women’s Participation – a Dialogue and Thoughts)
सहभागिता या भागीदारी का अर्थ है – खेलों के क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता या भागीदारी। प्राचीन ओलंपिक खेलों में महिलाओं को खेल स्पर्द्धाओं को देखने की अनुमति नहीं थी। आधुनिक ओलंपिक खेल जो कि सन् 1896 में एथेंस में प्रारंभ हुए थे, उनमें भी महिलाओं की कोई सहभागिता या भागीदारी नहीं थी। आधुनिक ओलंपिक खेलों में महिलाओं की सहभागिता या भागीदारी सन् 1900 से ही प्रारंभ हुई थी। दो खेल प्रतियोगिताओं में भाग लिया। इस ओलंपिक खेलों में केवल बाईस महिलाओं ने ही भाग लिया था।
सन् 1904 में आयोजित ओलंपिक खेलों में महिला प्रतियोगिताओं में केवल छः महिलाओं ने ही भाग लिया। सन् 2000 सिडनी ओलंपिक खेलों में महिला प्रतिभागियों की संख्या 4069 तक बढ़ गई। इस ओलंपिक खेल में 199 देशों से आए कुल 10,500 खिलाड़ियों ने भाग लिया जिनमें से 38.2% महिलाएँ थीं।
2008 में बीजिंग ओलंपिक खेलों में 205 देशों के कुल 10,700 खिलाड़ियों ने भाग लिया। जिनमें से 7,637 महिलाएँ थीं अर्थात 42.4 प्रतिशत थीं। ओलंपिक खेलों में भारत से 26 महिला प्रतिभागियों ने भाग लिया। सन् 1952 के ओलंपिक में पहली भारतीय महिला ने भाग लिया। सन् 2000 के सिडनी ओलंपिक में भारोत्तोलन में कांस्य पदक जीतनते वाली कर्णम मल्लेश्वरी पहली भारतीय महिला बनीं। वर्ष 2012 के लंदन ओलंपिक खेलों में साइना नेहवाल तथा एम.सी. मेरीकॉम, प्रत्येक ने एक-एक कांस्य पदक जीतकर भारतवर्ष के ताज में रंगीन पंख लगा दिए।
1984 के ओलंपिक में 400 मी. की बाधा दोड़ में पी.टी. ऊषा पदक नहीं जीत पाई थी, तथापि उसका प्रदर्शन उल्लेखनीय तथा असाधार्ण था। वास्तव में विश्व कप, राष्ट्रमंडल खेलों, एशियाई खेलों तथा सैफ (SAF) आदि खेलों में विभिन्न पदक जीतने वाली महिला खिलाड़ियों की एक लंबी सूची है।
सामान्यः यद देखा जाता है कि महिलाओं को पुरूष सहभागियों की तुलना में समान अवसर प्रदान नहीं कया जाता है। पुरूषो को आज भी महिलाओं की अपेक्षा बेहतर समझा जाता है। खेलों में महिलाओं तथा पुरूषों में भेदभाव किया जाता है। सामान्य सामाजिक वातावरण ने न केवल महिलाओं की खेलों में सहभागिता या भागीदारी को बाधित किया है, अपितु जब कभी महिलाओं ने खेलों में भाग लिया तब-तब उन्हें बहिष्कृत भी कर दिया गया। यह भिन्नताएँ स्कूलों तथा कॉलेजों में पुरूषों की तुलना में महिलाओं को दी जा रही सुविधा व अवसर में देखी जा सकती है।
महिलाओं के खेलों में प्रतिभागिता के विषय में हार्ट (Hart) ने अपनी पुस्तक में हॉलैण्ड की एक महिला चालक (ड्राइवर) हेतु एक ऑस्ट्रेलियाई रेसिंग ड्राइवर द्वारा की गई टिप्पणी का उल्लेख किया है – “वे अपनी रसोई में क्यों नहीं रहती जो उनके रहने की जगह है”। मेरीकॉम के पिता ने भी उनके मुक्केबाजी के खेल को चुनने पर आपत्ति जताई थी। उन्हें लगता था कि मोरीकॉम की शादी की शंभावनाएँ बर्बाद हो जाएगी। भेदभाव की प्रत्येक घटनाओं की जानकारी चकित या स्तब्ध कर देने वाली हैं।
बहुत सी महिला खिलाड़ी सहभागित या भागीदारी से संबंधित सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक बाधाओं को चुनौती दे रही हैं, किंतु इस दिशा में अभी बहुत काम करना शेष है।
खेलों में महिलाओं की कम भागीदारी होने के कारण (Reasons of Low Participation of Women in Sports)
खेलों में महिलाओं की कम सहभागिता या भागीदारी के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –
क) कानून की कमी – सन् 1972 में संयुक्त राज्य अनेरीका में एक कानून पारित किया गया था, जिसमें सभी शैक्षिक संस्थाओं को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने का प्रावधान था। वास्तव में यह कानून सभी स्तरों पर खेलों में महिलाओं को समान अवसर उपलब्ध करान तथा भेदभाव को रोकने के लिए किया गया था। महिलाओं को भी खेलों में समान सुविधाएँ प्रदान की जाएँगी। जैसा कि पुरूषों के मामले में है। इस संकल्प के परिणाम स्वरूप खेलों में महिलाओं की सहभागिता में स्पष्ट रूप से वृद्धि हुई है। भारत में ऐसे कानून की कमी है। स्कूलों तथा कॉलेजों में महिलाओं के लिए सुविधाओं की अत्यंत कमी है।
ख) दर्शकों की रुचि कम होना तथा महिलाओं के खेलों का प्रसारण न होना – महिला खेल मुकाबलों के दर्शकों की कमी है, क्योंकि पुरूष खेल मुकाबलों में भी दर्शकों में उसी तरह की कमी है। पुरूषों के क्रिकेट मैच के मुकाबले महिला क्रिकेट मैच दर्शकों की भरमार नहीं रहती है। प्रत्येक व्यक्ति पुरूष क्रिकेट के विषय में ही चिंतित रहता है।
शायद ही दर्शक महिला विश्व कप, महिला कबड्डी वल्ड कप, महिला हॉकी वल्ड कप आदि टी.वी. पर देखते हैं। महिला खेलों को अखबारों में भी पर्याप्त स्थान नहीं दिया जाता। किसी खेल मुकाबले के दर्शक कम संख्या में हैं तो खिलाड़ी चाहे वे पुरूष हो अथवा महिला उन्हें खेलों में भाग लेने के लिए पर्याप्त अभिप्रेरणा नहीं मिलेगा।
ग) अनुकरणीय व्यक्ति के रूप में भी महिला खिलाड़ियों की कमी है, यह भी एक कारण हैं महिलाओं का खेल में भागीदारी न लेना।
घ) पुष्टि तथा सुयोग्यता आन्दोलन की कमी – पुष्टि तथा सुयोग्यता के विकास में खेल प्रभावी तथा अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, किंतु भारत में रहने वाली महिलाओं के लिए खेदजनक बात यह है कि वे अपनी पुष्टि तथा सुयोग्यता के प्रति अधिक जागरूक नहीं है। अधिकतर महिलाएँ पुष्टि तथा सुयोग्यता आंदोलन के बारे में नहीं जानती हैं।
बहुत-सी महिलाएँ तथा लड़कियाँ शरीर की बनावट तथा आकार के प्रति जागरूक तथा सावधान नहीं हैं। यदि वे अपनी आकृति, बनावट, स्वास्थय, पुष्टि तथा सुयोग्यता के बारे में जान जाएँ। तो वे अवश्य ही खेलों में भाग लेंगी, क्योंकि उनकी पुष्टि व सुयोग्यता में वृद्धि करने में खेल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
ड़) महिलाओं में शिक्षा की कमी – शिक्षा की कमी के कारण महिलाओं की खेलों में सहभागिता कम है। शिक्षा की कमी के कारण महिलाएँ हमारे समाज की आधारहीन तथा काल्पनिक गलतफहमियों में घिरी रहती हैं। माना जाता है कि खेलों में भाग लेने वाली महिलाओं की शारीरिक, सामाजिक तथा मनौवैज्ञानिक विशेषताओं और गुणों में परिवर्तन आ जाता है। यह भी माना जाता है कि खेलों में भाग लेने वाली महिलाओं को प्रसव के समय अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उनकी अस्थियाँ कमज़ोर हो जाती हैं तथा उनका स्त्रीत्व भी खतरे में पड़ जाता है। परन्तु सत्य यह है कि यह सब मात्र गलतफहमियाँ या गलत धारणाएँ हैं।
च) महिला प्रशिक्षकों (कोच) की कम संख्या – भारत में महिला प्रशिक्षकों की कम संख्या भी महिलाओं की खेलों में कम सहभागिता के कारणों में से एक है।
छ) खेलों में महिलाओं की भागीदारी के प्रति समाज की अभिवृत्ति – भारतीय समाज का महिलाओं की खेलों में भागीदारी के प्रति नजरिया एवं दृष्टिकोण सही नहीं है। वास्तव में न् केवल भारत अपितु विश्व के अन्य बहुत से देश ऐसे हैं जिनका महिलाओं की खेलों में भागीदारी के प्रति दृष्टिकोण नकारात्मक है।
ज) व्यक्तिगत सुरक्षा की कमी – जो महिलाएँ खेलों में भाग लेने की इच्छुक हैं उनकी सड़कों, गलियों, सार्वजनिक यातायात के साधनों तथा खेल-स्थलों के अंदर और आसपास व्यक्तिगत सुरक्षा एक महत्वपूर्ण तथा विशिष्ट समस्या है। वे डराने धमकाने तथा दुर व्यवहार का अक्सर शिकार हो जाती हैं। परिणाम स्वरूप माता-पिता या अभिभावक महिलाओं को खेलों में भाग लेने से प्रायः इंकार कर देते हैं।
झ) खेलकूद को पुरूष प्रधान क्रियाकलाप के रूप में देखा जाता है परिणाम स्वरूप महिलाएँ खेलकूद से दूर हो जाती हैं।
- Motivation : बेटी को दहेज देकर असुरक्षा और बेटे को प्रोपटी देकर सुरक्षा दी | Giving Dowry To The Daughter Created Insecurity And Giving Property To The Son Provided Security
- Motivation : बिना माँगे सलाह न दें, लोग आपको मूर्ख समझते हैं | Don’t Give Advice Without Being Asked, People Think You Are A Fool
- Motivation : पिता बच्चों के प्रति स्नेह क्यों नहीं जताते? | Why do Fathers In India Not Show Affection Towards Their Children?
- Motivation : करियर नहीं बना, शादी की उम्र निकली जा रही है क्या करें? | What should I do?
- Motivation : बच्चों को इतना कबिल बनाना चाहिए | Children Should Be Made This Capable.
- Motivation : IAS को सम्मान देते हो, मोची, ठेले वाले, सब्जी वाले, दर्जी इत्यादि को भी सम्मान दो | Give Respect To Cobblers, Cart Pushers, Vegetable Vendors, Tailors Etc.
- Motivation : सीरियल देखकर महिलाएं बिगड़ जाती हैं- अफवाह या सच? | Women Become Spoilt After Watching Serials- Rumour Or Truth?
- Motivation : जब हमारा सबसे करीबी हमसे दूर होने लगे तो क्या करें? | What to Do When Your Closest Person Drifts Away?
- Motivation : बच्चों को चीज़ो का मुल्य कैसे समझाएँ? | How to Explain The Value Of Things To Children?
- Motivation : ऑक्सफोर्ड का वर्ड ऑफ द ईयर 2024 बनने वाला ‘ब्रेन रोट’ क्या है? | What is ‘Brain Rot’ Going To Be Oxford’s Word