SEBI ने IPO अप्रूवल नियमों को किया कड़ा | SEBI Tightens IPO Approval Rules

आईपीओ (Initial Public Offer)  के लिए कंपनियों को संघर्ष करना पड़ेगा

अब आईपीओ यानी इनिशियल पब्लिक ऑफर (Initial Public Offer) लाने के लिए कंपनियों को पापड़ बेलने पड़ जाएंगे। सेबी (Security Exchange Board Of India)  अब सख्त रुख अपनाया है। सेबी अब आईपीओ को मंजूरी देते समय सतर्कता बरत रहा है। दरअसल पेटीएम ( Paytm) के आईपीओ (IPO) की असफलता के बाद सेबी (SEBI) ने यह कदम उठाया है। सेबी ने हाल ही में एक के बाद एक छह कंपनियों के आईपीओ कागजात लौटाए हैं।

सेबी ने क्यों की सख्ती? (Why did SEBI Act Strictly?)

सेबी ने हाल ही में ओरावेल स्टेज लिमिटेड समेत आधा दर्जन कंपनियों के आईपीओ कागजात लौटाए हैं। ओरावेल स्टेज ट्रैवल टेक फर्म ओयो (OYO) की पेरेंट कंपनी है। इन कंपनियों को कुछ अपडेट और DRHP के साथ फिर से आईपीओ कागजात फाइल करने के लिए कहा गया है।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि कई कंपनियों के आईपीओ में पैसा लगाने वाले निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। ऐसे में सेबी अब किसी भी आईपीओ को मंजूरी देने में सख्ती दिखा रहा है।

कंपनियों के लौटाए कागजात (Returned documents of companies)

OYO के अलावा जिन फर्मों के ड्राफ्ट पेपर लौटाए गए हैं, उनमें गो डिजिट जनरल इंश्योरेंस लिमिटेड, मोबाइल बनाने वाली भारतीय कंपनी लावा इंटरनेशनल, B2B पेमेंट और सर्विस प्रोवाइडर Paymate India;   फिनकेयर स्मॉल फाइनेंस बैंक इंडिया और इंटीग्रेटेड सर्विस कंपनी BVG India शामिल हैं।

6 कंपनियों ने सितंबर 2021 और मई 2022 के बीच सेबी के पास आईपीओ कागजात दाखिल किए थे। सेबी ने जनवरी-मार्च (10 मार्च तक) के दौरान उनके कागजात वापस कर दिए गए थे। ये कंपनियां मिलकर कम से कम 12,500 करोड़ रुपए जुटाने की उम्मीद कर रही थीं।

ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्टपेक्टस (डीआरएचपी) (Draft Red Herring Prospectus (DRHP))

ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्टपेक्टस (डीआरएचपी) एक किस्म का ऑफर डॉक्युमेंट होता है, जिसे मर्चेंट बैंकर आईपीओ पेश करने वाली कंपनी के साथ मिलकर तैयार करते हैं। इस दस्तावेज में कंपनी और उसके कारोबार की विस्तृत जानकारी होती है।

इसके अलावा, डीआरएचपी में कंपनी के परिचलान, प्रमोटर्स, वित्तीय सेहत, इंडस्ट्री में इसकी भागीदरार व भूमिका और सूचीबद्ध व गैर- सूचीबद्ध प्रतिद्वंद्वी कंपनियों से इसकी तुलना के विषय में बताया जाता है। मर्चेंट बैंकर का दायित्व है कि वह सभी कानूनी नियमों का अनुपालन करवाए।

इस दस्तावेज (डीआरएचपी) में कंपनी बताती है कि वह बाजार से पैसा क्यों जुटाना चाहती है, कितना पैसा जुटाना चाहती और इस पैसे का वह क्या इस्तेमाल करने वाली है। इसके अलावा कंपनी को निवेशकों उसमें निवेश करने के संभावित जोखिमों के बारे में भी बताना होता है। इसमें न तो कंपनी यह बताती है कि वह किस भाव पर आईपीओ पेश कर रही और न ही यह कि वह कितने शेयर बेचने वाली है। कंपनी को इसकी जगह प्राइस बैंड बताना होता है। यानी वह अधिकतम किस भाव पर और न्यूनतम किस भाव पर शेयर इश्यू करने वाली है। इश्यू का साइज और शेयरों की संख्या बाद में बताई जाती है।

शेयरों के भाव को तब तक खुल कर जाहिर नहीं किया जाता, जब तक बोली की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती। कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के तहत डीआरएची में इसकी जानकारी नहीं दी जाती है। मर्चेंट बैंकरों का यह भी काम है कि वे संभावित निवेशकों तक तमाम जानकारी पहुंचाए और उनके हितों की रक्षा करें।

सेबी इस याचिका मसौदे की समीक्षा करता है। इसके बाद वह मर्चेंट बैंकर अपनी तरफ से ‘ऑब्जर्वेशन’ प्रदान करता है। इसके बाद संबंधित बदलाव कर मसौदा फिर दायर किया जाता है।

यह मसौदा सेबी के पास तो जाता है, इसके अलावा कंपनी के रेजिस्ट्रार और स्टॉक एक्सचेंजों को भी दिया जाता है। अंतिम दस्तावेज की समीक्षा की जाती है और दोबारा देखा जाता कि कुछ बदलाव करने हैं या नहीं।

बड़े आईपीओ में निवेशकों को हुआ नुकसान (Investors Suffered Losses in Big IPOs)

2021 में कुछ हाई-प्रोफाइल आईपीओ में निवेशकों के पैसे गंवाने के बाद सेबी आईपीओ को मंजूरी देने में अब सख्त हो गया है। Primedatabase.com के आंकड़ों के अनुसार मार्केट रेगुलेटर ने 2022 में आईपीओ को मंजूरी देने में एवरेज 115 दिन का समय लिया है।

जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वीके विजयकुमार ने कहा, “नए दौर की डिजिटल कंपनियों जैसे पेटीएम, ज़ोमैटो और नायका की लिस्टिंग में निवेशकों को भारी नुकसान के बाद सेबी ने IPO अप्रूवल से जुड़े नियमों को कड़ा कर दिया है। यह स्वागत योग्य है और निवेशकों के हित में है।” उन्होंने आगे कहा, “हालांकि, निवेशकों को किसी भी आईपीओ के लिए अप्लाई करते समय सूझबूझ दिखाना होगा।”

by Sunaina

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